
Harsh Beniwal - Age , GF , Qualifications and More | Full Biography

आज हम आपके लिए लाये है एक ऐसे इन्सान की कहानी जिसने भारतीय क्रिकेट टीम में आते ही तहलका मचा दिया. भारतीय टीम में एक नई उर्जा को स्थापित किया. जी हाँ, दोस्तों हम बात कर रहे है युज्वेंद्र चहल की, जिन्होंने भारतीय टीम में आते ही अपने करियर को बुलंदी पर पहुँचा दिया. तो चलिए शुरू जानते है उनके बारे मे.
युज्वेंद्र चहल का जन्म 23 जुलाई 1990 को जींद, हरियाणा में एक मध्यम वर्ग परिवार में हुआ था. उनके पिताजी के.के.चहल पेशे से वकील है और उनकी माँ एक घरेलु महिला है. युज्वेंद्र परिवार में सबसे छोटे है उनकी 2 बड़ी बहनें है जो ऑस्ट्रेलिया में रहती है.
यदि हम युज्वेंद्र चहल की पढाई को लेकर बात करे तो उन्होंने अपनी पढ़ाई जींद के ही DAVC पब्लिक स्कूल से पूरी हुई. युज्वेंद्र का मन पढाई में बिलकुल नहीं लगता था लेकिन वह क्रिकेट और चेस को बहुत पसंद करते थे. इसीलिए मात्र 7 साल की उम्र में ही उन्होंने चेस खेलना शुरू कर दिया और साथ ही क्रिकेट खेलने की भी शुरुवात की.
देखते ही देखते वह अपने जूनून और कठिन परिश्रम के कारण वह अपने ही क्षेत्र के चेस मास्टर को मत देने लगे. इसी वजह से उन्हें मात्र 10 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्तर पर शतरंज में अपना जौहर दिखाने का मौका मिला. जहां उन्होंने 2002 में राष्ट्रीय स्तर पर की जाने वाली बाल चेस प्रतियोगिता को जीत कर चैंपियन होने का ख़िताब अपने नाम किया. ये उनकी पहली राष्ट्रीय चैंपियन ट्रॉफी थी.
इस ख़िताब की वजह से पहली बार उन्हें अन्तराष्ट्रीय स्तर पर ग्रीस में आयोजित जूनियर वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप में भारत के लिए खेलने का मौका मिला. इसके आलावा युज्वेंद्र अंडर 16 नेशनल चेस चैंपियनशिप का भी हिस्सा रह चुके है.
वर्ष 2006 में उनके करियर का सबसे ख़राब दौर आया उन्हें अपने चेस गेम के लिए स्पोंसर मिलना बंद हो गये. उनके सामने सबसे बड़ी विपदा आई वो थी पैसा. चेस ऐसा खेल था जिसमे उनका हर साल 50 से 60 हजार सालाना खर्च होता था. चहल के सामने समस्या ये थी कि वो कैसे इतने पैसे इस खेल के लिए जुटा पाएँगे. इसीलिए उन्होंने फैसला लिया की अब वो आगे चेस नहीं खेलेंगे और उन्होंने इस खेल को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया.
उसके बाद चहल ने क्रिकेट को ही अपना लक्ष्य बना लिया और क्रिकेट में जी तोड़ मेहनत करना शुरू कर दी. चहल अपनी लाइफ में कभी मेहनत करने से नही चुकते थे और कहते है कि जो मेहनत करता है उसे भगवान जरुर फल देता है. ऐसा ही कुछ हुआ चहल के करियर में.
चहल की ज़िन्दगी में आईपीएल एक बेहतरीन मौका और मोड़ लेकर आया था. चहल को पहली बार 2011 IPL में मुंबई इंडियन ने ख़रीदा था. चहल 2011 के IPL में खेलने का कुछ खास मौका नहीं मिला पूरे आईपीएल में सिर्फ 1 ही मैच में दिखाई दिए. बता दे कि चहल को उल्टे हाथ के स्पिन गेंदबाज़ के तौर पर टीम में लिया गया था. चहल फिर भी हार नहीं मानी और अपने खेल में और सुधार करना शुरू कर दिया. उसी मेहनत की वजह से CHAMPION LEAGUE TWENTY-20 में अपनी टीम की तरफ से सभी मैच खेलने का मौका मिला और जहां उन्हें हरभजन सिंह से एक गेंदबाज़ के तौर पर बहुत कुछ सिखने को मिला.
चहल ने इस लीग के फाइनल में 3 ओवर में 9 रन देकर 2 विकेट लिए थे. और उसका नतीजा ये हुआ की 2014 की आईपीएल नीलामी में ROYAL CHALANGERS BANGLORE ने 10 लाख रुपये में ख़रीदा था. जिसमे उन्होंने बेहतरीन खेल दिखाया.
उनकी लगातार अच्छी परफॉरमेंस की वजह से उनकी लाइफ में नया मोड़ आया. 2016 में पहली बार ज़िम्बाम्वे के खिलाफ भारतीय क्रिकेट टीम की तरफ से खेलने का मौका मिला. इस सीरिज में उन्होंने संतोष पूर्ण खेल दिखाया. 2016 IPL में उन्होंने 21 विकेट चटकाए और भुवनेश्वर कुमार के बाद दुसरे सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज़ बने.
जो अपनी मदद करता है भगवान भी उसकी मदद करता है ऐसा ही कुछ चहल के साथ हुआ. भारतीय टीम इतनी सशक्त थी कि उसमे चहल के लिए कहीं जगह नहीं बन पा रही थी. फिर आया एक दिन जब टीम इंडिया इंग्लैंड के खिलाफ मैच खेल रही थी. 3 मैचो की टेस्ट की सीरिज के बाद रविन्द्र जडेजा और अश्विन को T20 सीरिज में आराम दे दिया गया और वहीँ उनकी जगह 2 खिलाड़ियों को मौका दिया गया उसमे एक नाम युज्वेंद्र चहल भी था. चहल ने उस मौके का फायदा उठाया और बेहतरीन खेल खेलते हुए भारतीय क्रिकेट इतिहास में अपना नाम अव्वल दर्जे पर लिख दिया.
उन्होंने एक लेग स्पिनर के तौर पर T20 इंटरनेशनल में 25 रन देकर 6 विकेट लिए जो T20 का सर्वश्रेष्ट रिकॉर्ड था. उसके बाद चहल का खेल उनका साथ देता रहा और वो फिर नहीं कभी नहीं रुके.
कहते है जो होता है अच्छे के लिए होता हैं जीवन में जो भी कठिनाई आये उसका सामना हँसकर करना चाहिए. उसका एक उदहारण चहल भी है. यदि उस दिन चहल चेस को अलविदा नहीं कहा होता तो आज इंडियन टीम को इतना अच्छा खिलाड़ी नहीं मिलता ।
रणदीप हुड्डा हिन्दी फिल्मों के अभिनेता हैं। वे फिल्मों में आने से पहले मॉडलिंग और थियेटर में अभिनय करते थे। वह अपने अभिनय की वजह से लोगों के बीच खासा चर्चित हैं। फिल्मों के अलावा वे पोलो और शो जंपिंग जैसे खेलों में बराबर प्रतिभाग करते हैं। वह समाजसेवी और ब्लॉगर भी हैं।
पृष्ठभूमि
रणदीप हुड्डा का जन्म रोहतक, हरियाणा में हुआ था। उनके पिता का नाम डॉ रनबीर हुड्डा है। उनकी मां का नाम आशा हुड्डा है।उनकी एक बड़ी बहन भी हैं जिनका नाम डॉ अंजली हुड्डा सांगवान है। उनका एक छोटा भाई भी है जिसका नाम संदीप हुड्डा है।
पढ़ाई
रणदीप हुड्डा की पढ़ाई मोतीलाल नेहरू स्कूल ऑफ स्पोटर्स, सोनीपत, हरियाणा से हुई थी। शुरूआती दिनों में उनका खेलों की तरफ काफी रूझान था लेकिन बाद में उन्होंने थियेटर और एक्टिंग की तरफ अपनी रूचि विकसित की। उनका दाखिला दिल्ली पब्लिक स्कूल, आर.के.पुरम, नई दिल्ली में भी हुआ था। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद वे मेलबर्न चले गए जहां से उन्होंने मॉर्केटिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और बिजनेस मैनेजमेंट और ह्यूमन रिर्सोस मैनेजमेंट में स्नाकोत्तर की डिग्री प्राप्त की।
करियर
हुड्डा के फिल्मी करियर की शुरूआत मीरा नायर की फिल्म 'मॉनसून वेडिंग' से हुई थी। मुख्य अभिनेता के तौर पर वे राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'डी' में दिखाई दिए इसके बाद उन्होंने कई छोटी-बड़ी फिल्मों में काम किया और अपने अभिनय का इंडस्ट्री में लोहा मनवाया। फिल्म 'वन्स अपान ए टाइम इन मुंबई' उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट रही। इसके बाद भी रणदीप कई फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं। जन्नत 2, मर्डर 3, सरबजीत, बागी 2, सुल्तान और किक 2 उनकी बेहतरीन फिल्में हैं।
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