कोरोना वैक्सीन: भारत में '73 दिनों' में वैक्सीन मिलने के दावे का सच क्या है

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कोरोना वायरस की वैक्सीन को तैयार करने के लिए दुनिया भर में 170 से ज़्यादा जगहों पर कोशिश चल रही है.
इन 170 जगहों में 138 कोशिशें अभी प्री क्लिनिकल दौर में हैं. लेकिन कईयों का क्लिनिकल ट्रायल चल रहा है. 25 वैक्सीन का ट्रायल बहुत छोटे दायरे वाले फेज वन में चल रहा है. जबकि थोड़े बड़े दायरे में 15 वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है.
लेकिन दुनिया की नज़रें उन कोशिशों पर टिकी हैं जहां फेज तीन का ट्रायल चल रहा है. यह मौजूदा समय में सात जगहों पर चल रहा है.
इन सबके बीच शनिवार को भारतीय मीडिया में 73 दिनों के भीतर कोरोना वैक्सीन उपलब्ध होने की ख़बर सुर्खियों में आ गई.
भारतीय मीडिया रिपोर्ट्स के दावे के मुताबिक ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में तैयार हो रही वैक्सीन को भारत में मुहैया कराने वाली सीरम इंस्टीट्यूट की ओर से यह दावा किया गया, हालांकि रविवार को सीरम इंस्टीट्यूट ने इसको लेकर स्पष्टीकरण जारी करते हुए 73 दिनों की बात को मिसलिडिंग बताया.
सीरीम इंस्टीट्यूट की ओर से बताया गया है कि इस वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल किया जा रहा है और अभी केवल इसके भविष्य को ध्यान में रखते हुए उत्पादन की मंजूरी मिली है. वैक्सीन बनाने के लिए दुनिया की शीर्ष कंपनियों में शुमार सीरम इंस्टीट्यूट ने यह भी कहा है कि जब वैक्सीन के ट्रायल पूरी तरह संपन्न हो जाएगा, वैक्सीन को मानकों से मंजूरी मिलेगी तब उसकी उपलब्धता की जानकारी दी जाएगी.
भारत की दावेदारी- 'Covaxin', Covishield
इससे पहले 15 अगस्त को लाल क़िले से अपने संबोधन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश में तीन कोरोना वैक्सीन के ट्रायल की बात कही है. सीरम इंस्टीट्यूट के अलावा भारत में दो वैक्सीन पर काम चल रहा है.
भारत बायोटैक इंटरनेशनल लिमिटेड की वैक्सीन का नाम कोवैक्सीन है. दूसरा वैक्सीन प्रोजेक्ट ज़ाइडस कैडिला हेल्थकेयर लिमिटेड का है. कोवैक्सीन के डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में सरकारी एजेंसी इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी शामिल हैं.
इसके ह्यूमन ट्रायल के लिए देश भर में 12 संस्थाओं को चुना गया है, जिनमें रोहतक की पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़, हैदराबाद की निज़ाम इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ शामिल हैं.
आईसीएमआर के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव ने पिछले दिनों इन 12 संस्थाओं के प्रिंसिपल इन्वेस्टीगेटर्स से कोवैक्सीन ह्यूमन क्लीनिकल ट्रायल की रफ़्तार में तेज़ी लाने की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि ये शीर्ष प्राथमिकता वाली परियोजनाओं में से एक है, जिस पर सरकार के शीर्ष स्तर से निगरानी रखी जा रही है.
लेकिन हेल्थ एक्सपर्ट्स इस पर सवाल उठा रहे हैं कि वैक्सीन तैयार करने के लिए जितने समय की ज़रूरत होती है और जिन प्रक्रियाओं से गुजरना होता है, क्या उनका पालन किया गया है.
वैसे मोटे तौर पर अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर जल्दी से वैक्सीन मिला भी तो भी इस साल के अंत तक ही मिल पाएगा. भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने भी साल के अंत तक कोरोना वैक्सीन मिलने की उम्मीद जताई है.
रूस का पहली वैक्सीन बनाने का दावा
बहरहाल, कोरोना वैक्सीन को लेकर अब तक की सबसे बड़ी कामयाबी का एलान 11 अगस्त, 2020 को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने किया. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दावा किया है कि उनके वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस की ऐसी वैक्सीन तैयार कर ली है जो कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ कारगर है.
पुतिन ने कहा कि इस टीके का इंसानों पर दो महीने तक परीक्षण किया गया और ये सभी सुरक्षा मानकों पर खरा उतरा है. इस वैक्सीन को रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी मंजूरी दे दी है. लेकिन यह वैक्सीन अभी तक वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के मानकों पर स्वीकृत नहीं हुआ है.
गेमलया इंस्टीट्यूट में विकसित इस वैक्सीन के बारे में उन्होंने कहा कि उनकी बेटी को भी यह टीका लगा है. इस वैक्सीन को गेमलया इंस्टीट्यूट के साथ रूसी रक्षा मंत्रालय ने विकसित किया है. माना जा रहा है कि रूस में अब बड़े पैमाने पर लोगों को यह वैक्सीन देनी की शुरुआत होगी. रूसी मीडिया के मुताबिक़ 2021 में जनवरी महीने से पहले दूसरे देशों के लिए ये उपलब्ध हो सकेगी.
समाचार एजेंसी रायटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक रूस में सितंबर से इस वैक्सीन स्पुतनिक v का अद्यौगिक उत्पादन शुरू किया जाएगा. इसी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनिया भर के 20 देशों से इस वैक्सीन के एक अरब से ज़्यादा डोज के लिए अनुरोध रूस को मिल चुका है. रूस हर साल 50 करोड़ डोज बनाने की तैयारियों में जुटा है.
हालाँकि रूस ने जिस तेज़ी से कोरोना वैक्सीन विकसित करने का दावा किया है, उसको देखते हुए वैज्ञानिक जगत में इसको लेकर चिंताएँ भी जताई जा रही हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत दुनिया के कई देशों के वैज्ञानिक अब खुल कर इस बारे में कह रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि उसके पास अभी तक रूस के ज़रिए विकसित किए जा रहे कोरोना वैक्सीन के बारे में जानकारी नहीं है कि वो इसका मूल्यांकन करें.
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पिछले हफ़्ते विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रूस से आग्रह किया था कि वो कोरोना के ख़िलाफ़ वैक्सीन बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय गाइड लाइन का पालन करे.
रूस के दावे पर शंका
विश्व स्वास्थ्य संगठन के तहत जिन सात वैक्सीन का तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा हैं, उनमें रूस की वैक्सीन का ज़िक्र नहीं है. विश्व के दूसरे देश इसलिए भी रूस की वैक्सीन को लेकर थोड़े आशंकित हैं.
दरअसल जिस कोरोना वैक्सीन को बना लेने का दावा रूस कर रहा है, उसके पहले फेज़ का ट्रायल इसी साल जून में शुरू हुआ था.

रूस में विकसित इस वैक्सीन के ट्रायल के दौरान के सेफ़्टी डेटा अभी तक जारी नहीं किए गए हैं. इस वज़ह से दूसरे देशों के वैज्ञानिक ये स्टडी नहीं कर पाए हैं कि रूस का दावा कितना सही है.
रूस ने कोरोना के अपने टीके को लेकर उठी अंतरराष्ट्रीय चिंताओं को ख़ारिज करते हुए इसे 'बिल्कुल बेबुनियाद' बताया है. जानकारों ने रूस के इतनी तेज़ी से टीका बना लेने के दावे पर संदेह जताया. जर्मनी, फ़्रांस, स्पेन और अमरीका में वैज्ञानिकों ने इसे लेकर सतर्क रहने के लिए कहा.
इसके बाद रूस के स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराश्को ने रूसी समाचार एजेंसी इंटरफ़ैक्स से कहा, "ऐसा लगता है जैसे हमारे विदेशी साथियों को रूसी दवा के प्रतियोगिता में आगे रहने के फ़ायदे का अंदाज़ा हो गया है और वो ऐसी बातें कर रहे हैं जो कि बिल्कुल ही बेबुनियाद हैं."
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अमरीका में देश के सबसे बड़े वायरस वैज्ञानिक डॉक्टर एंथनी फ़ाउची ने भी रूसी दावे पर शक जताया है. डॉक्टर फ़ाउची ने नेशनल जियोग्राफ़िक से कहा, "मैं उम्मीद करता हूँ कि रूसी लोगों ने निश्चित तौर पर परखा है कि ये टीका सुरक्षित और असरकारी है. मुझे पूरा संदेह है कि उन्होंने ये किया है."
रूस की इस वैक्सीन से इतर इस समय कोरोना महामारी के ख़िलाफ़ दुनिया भर में वैक्सीन विकसित की लगभग 23 परियोजनाओं पर काम चल रहा है. लेकिन इनमें से कुछ ही ट्रायल के तीसरे और अंतिम चरण में पहुँच पाई हैं और अभी तक किसी भी वैक्सीन के पूरी तरह से सफल होने का इंतज़ार ही किया जा रहा है. इनमें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, मॉडर्ना फार्मास्युटिकल्स, चीनी दवा कंपनी सिनोवैक बॉयोटेक के वैक्सीन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स अहम हैं.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैक्सीन प्रोजेक्ट ChAdOx1 में स्वीडन की फार्मा कंपनी एस्ट्राज़ेनेका भी शामिल है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की कोविड वैक्सीन के ट्रायल का काम दुनिया के अलग-अलग देशों में चल रहा है.
मई के महीने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की चीफ़ साइंटिस्ट सौम्या विश्वनाथन ने ऑक्सफोर्ड के प्रोजेक्ट को सबसे एडवांस कोविड वैक्सीन कहा था. इंग्लैंड में अप्रैल के दौरान इस वैक्सीन प्रोजेक्ट के पहले और दूसरे चरण के ट्रायल का काम एक साथ पूरा किया गया.

18 से 55 साल के एक हज़ार से ज़्यादा वॉलिंटियर्स पर किए गए ट्रायल में वैक्सीन की सुरक्षा और लोगों की प्रतिरोधक क्षमता का जायजा लिया गया था. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का ये वैक्सीन प्रोजेक्ट अब ट्रायल और डेवलपमेंट के तीसरे और अंतिम चरण में है.
ऑक्सफोर्ड कोविड वैक्सीन के ट्रायल के इस चरण में क़रीब 50 हज़ार वॉलिंटियर्स के शामिल होने की संभावना है. दक्षिण अफ्रीका, अमरीका, ब्रिटेन और ब्राज़ील जैसे देश ट्रायल के अंतिम चरण में भाग ले रहे हैं.
भारत की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया ने भी ऑक्सफोर्ड कोविड वैक्सीन के भारत में इंसानों पर परीक्षण की तैयारी में है.
अगर अंतिम चरण के नतीजे भी सकारात्मक रहे, तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च टीम साल के आख़िर तक ब्रिटेन की नियामक संस्था 'मेडिसिंस एंड हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी' (एमएचआरए) के पास रजिस्ट्रेशन के लिए साल के आख़िर तक आवेदन करेगी.
अमरीका की मॉडर्ना कोविड वैक्सीन
बीते 15 जुलाई को अमरीका में टेस्ट की जा रही कोविड-19 वैक्सीन से लोगों के इम्युन को वैसा ही फ़ायदा पहुंचा है जैसा कि वैज्ञानिकों को उम्मीद थी. हालांकि अभी इस वैक्सीन का अहम ट्रायल होना बाक़ी है.
अमरीका के शीर्ष विशेषज्ञ डॉ. एंथोनी फाउची ने समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस से कहा,''आप इसे कितना भी काट-छांट कर देखो तब भी ये एक अच्छी ख़बर है.' माना जा रहा है कि मॉडर्ना वैक्सीन प्रोजेक्ट अपने अंतिम चरण के शुरुआती हिस्से में है. मॉडर्ना ट्रायल के इस चरण में 30 हज़ार लोगों पर इस वैक्सीन का परीक्षण करेगी.

विशेषज्ञों का कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर किसी नए प्रोडक्ट का परीक्षण तभी किया जाता है, जब वो नियामक एजेंसियों के पास मंज़ूरी के लिए दाखिल किए जाने के आख़िरी दौर में हो. राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने भी कोरोना वायरस के लिए इसे अब तक की सबसे तेज़ वैक्सीन प्रोजेक्ट करार दिया है.
मॉडर्ना के क्लीनिकल ट्रायल में अमरीका का नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ (एनआईएच) भी शामिल है. एनआईएच के निदेशक फ्रांसिस कोलिंस का कहना है कि साल 2020 के आख़िर तक कोरोना की वैक्सीन बना लेने का लक्ष्य रखा गया है.
मॉडर्ना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी स्टीफन बांसेल ने बताया, "मुझे उम्मीद है कि मॉडर्ना की वैक्सीन अमरीकी एजेंसी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के मापदंडों पर 75 फ़ीसदी तक खरी उतरेगी. हमें उम्मीद है कि ट्रायल में हमारी वैक्सीन कोरोना को रोकने में कामयाब होगी और हम इससे महामारी को ख़त्म कर पाएँगे."
नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ़ हेल्थ और मोडेरना इंक में डॉ. फाउची के सहकर्मियों ने इस वैक्सीन को विकसित किया है. 27 जुलाई से इस वैक्सीन का सबसे अहम पड़ाव शुरू हो चुका है. तीस हज़ार लोगों पर इसका परीक्षण किया जा रहा है और पता किया जाएगा कि क्या ये वैक्सीन वाक़ई कोविड-19 से मानव शरीर को बचा सकती है.
चीन भी है वैक्सीन के होड़ में
चीन की प्राइवेट फार्मा कंपनी सिनोवैक बॉयोटेक जिस कोविड वैक्सीन प्रोजेक्ट पर काम कर रही है, वो ट्रायल के तीसरे और आख़िरी चरण में पहुँच चुकी है. सरकारी मंजूरी से पहले किसी वैक्सीन को इंसानों पर परीक्षण में खरा उतरना होता है.
मॉडर्ना और ऑक्सफोर्ड के बाद ट्रायल के अंतिम चरण में पहुँचने वाला ये दुनिया का तीसरा वैक्सीन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट है. CoronaVac नाम की इस वैक्सीन का फ़िलहाल ब्राज़ील में नौ हज़ार वॉलिंटियर्स पर ट्रायल चल रहा है.
चीन में तीन अन्य जगहों पर भी कोरोना वैक्सीन को लेकर चल रहा ट्रायल तीसरे दौर में पहुंच गया है. इसमें एक ट्रायल वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ बायोलॉजिकल प्रॉडक्टस में सिनोफ़ार्म कंपनी के साथ संयुक्त तौर पर चल रहा है.
सीनोफॉर्म कंपनी की ओर से एक कोशिश बीजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ़ बायोलाजिकल प्राडक्टस में भी हो रही है. बीजिंग के ही एक अन्य इंस्टीट्यूट बीजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ़ बायोटैक्नालॉजी में कैनसिनो बायोलॉजिकल इंक भी कोरोना वैक्सीन बनाने की कोशिशों में जुटा है. यहां दो चरण का ट्रायल पूरा हो चुका है और तीसरे चरण का ट्रायल शुरू होने वाला है.

वैक्सीन बनाने को लेकर अब तक कितनी प्रगति हुई है?
जिन सात जगहों पर तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा है उसमें प्राइवेट कंपनियों की ओर से की जा रही कोशिश भी है. अमरीकी फार्मा कंपनी 'फ़ाइज़र' और जर्मन कंपनी 'बॉयोएनटेक' मिलकर एक कोविड वैक्सीन प्रोजेक्ट BNT162b2 पर काम कर रही हैं. दोनों कंपनियों ने एक साझा बयान जारी कर बताया है कि वैक्सीन प्रोजेक्ट इंसानों पर परीक्षण के आख़िरी चरण में पहुँच गई है. अगर ये परीक्षण सफल रहे, तो अक्तूबर के आख़िर तक वे सरकारी मंज़ूरी के लिए आवेदन दे सकेंगे. कंपनी की योजना साल 2020 के आख़िर तक वैक्सीन की 10 करोड़ और साल 2021 के आख़िर तक 1.3 अरब खुराक की आपूर्ति सुनिश्चित करने की है.
इसका अलावा शीर्ष दवा कंपनियां सनफई और जीएसके ने भी वैक्सीन विकसित करने के लिए आपस में तालमेल किया है. ऑस्ट्रेलिया में भी दो संभावित वैक्सीन का नेवलों पर प्रयोग शुरू हुआ है. माना जा रहा है कि इसका इंसानों पर ट्रायल अगले साल तक शुरू हो पाएगा.
जापानी की मेडिकल स्टार्टअप एंजेस ने कहा है कि उसने कोरोना वायरस की संभावित वैक्सीन का इंसानों पर परीक्षण शुरू कर दिया है. जापान में इस तरह का यह पहला परीक्षण है. कंपनी ने कहा है कि ओसाका सिटी यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में अगले साल 31 जुलाई तक ट्रायल जारी रहेंगे.
लेकिन कोई यह नहीं जानता है कि इनमें से कोई सी कोशिश कारगर होगी. विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख भी कई बार वैक्सीन बनाए जाने को लेकर नाउम्मीदी भी ज़ाहिर कर चुके हैं.
कोरोना वायरस की वैक्सीन इतनी अहम क्यों है?
आशंका यह है कि दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कोरोना वायरस की चपेट में आ सकता है. ऐसे में वैक्सीन इन लोगों को कोरोना वायरस की चपेट में आने से बचा सकता है.
कोरोना वायरस की वैक्सीन बन जाने से महामारी एक झटके में ख़त्म तो नहीं होगी लेकिन तब लॉकडाउन का हटाया जाना ख़तरनाक नहीं होगा और सोशल डिस्टेंसिंग के प्रावधानों में ढिलाई मिलेगी.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कोरोना वायरस के पहले मामले की पुष्टि 31 दिसंबर 2019 को हुई थी. जिस तेज़ी से वायरस फैला उसे देखते हुए 30 जनवरी 2020 को इसे पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया गया.
लेकिन शुरुआती वक्त में इस वायरस के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी और इस कारण इसका इलाज भी जल्द नहीं मिल पाया.
विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत कई देशों में डॉक्टर इससे निपटने के लिए वैक्सीन बनाने में जुटे हैं लेकिन सवाल यही है कि आख़िर इसके तैयार होने में कितना वक़्त लगेगा?
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कब तक बन पाएगा कोरोना का वैक्सीन?

किसी भी बीमारी का वैक्सीन विकसित होने में सालों का वक्त लगता है. कई बार दशकों का समय लगता है. लेकिन दुनिया भर के रिसर्चरों को उम्मीद है कि वे कुछ ही महीनों में उतना काम कर लेंगे जिससे कोविड-19 का वैक्सीन विकसित हो जाएगा.
कोरोना वायरस कोविड 19 को लेकर बेहद तेज़ गति से काम चल रहा है और टीका बनाने के लिए भी अलग-अलग रास्ते अपनाए जा रहे हैं.
ज़्यादातर एक्सपर्ट की राय में 2021 के मध्य तक कोविड-19 का वैक्सीन बन जाएगा यानी कोविड-19 वायरस का पता चलने के बाद वैक्सीन विकसित होने में लगने वाला समय 18 महीने माना जा रहा है.
अगर ऐसा हुआ तो यह एक बहुत बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि होगी, लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वैक्सीन पूरी तरह कामयाब ही होगी.

अब तक चार तरह के कोरोना वायरस पाए गए हैं जो इंसानों में संक्रमण कर सकते हैं. इन वायरस के कारण सर्दी-खांसी जैसे लक्षण दिखते हैं और इनके लिए अब तक कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है.
अभी कितना कुछ करना बाक़ी है?
कोविड-19 की वैक्सीन को तैयार करने की तमाम कोशिशें चल रही हैं. लेकिन अभी भी इस दिशा में काफ़ी कुछ किए जाने की ज़रूरत है.
वैक्सीन तैयार होने के बाद पहला काम इसका पता लगाना होगा कि यह कितनी सुरक्षित है. अगर यह बीमारी से कहीं ज़्यादा मुश्किलें पैदा करने वाली हुईं तो वैक्सीन का कोई फ़ायदा नहीं होगा. रूस की वैक्सीन को इसी पहलू के चलते शंका के साथ देखा जा रहा है.
क्लीनिकल ट्रायल में यह देखा जाना होता है कि वैक्सीन कोविड-19 को लेकर प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर पा रही है ताकि वैक्सीन लेने के बाद लोग इसकी चपेट में ना आएं.
वैक्सीन तैयार होने के बाद भी इसके अरबों डोज़ तैयार करने की ज़रूरत होगी. वैक्सीन को दवा नियामक एजेंसियों से भी मंजूरी लेनी होगी.
ये सब हो जाए तो भी बड़ी चुनौती बची रहेगी, दुनिया भर के अरबों लोगों तक इसकी खुराक पुहंचाने के लिए लॉजिस्टिक व्यवस्थाएं करने का इंतज़ाम भी करना होगा.

ज़ाहिर है इन सब प्रक्रियाओं को लॉकडाउन थोड़ा धीमा करेगा. एक दूसरी मुश्किल भी है अगर कोरोना से कम लोग संक्रमित होंगे तो भी इसका पता लगाना मुश्किल होगा कि कौन सी वैक्सीन कारगर है.
वैक्सीन की जांच में तेज़ी लाने का एक रास्ता है कि पहले लोगों को वैक्सीन दिया जाए और उसके बाद इंजेक्शन के ज़रिए कोविड-19 उनके शरीर में पहुंचाया जाए. लेकिन यह तरीका मौजूदा समय में बेहद ख़तरनाक है क्योंकि कोविड-19 का कोई इलाज़ मौजूद नहीं है.
कितने लोगों को वैक्सीन देने की ज़रूरत होगी?
वैक्सीन कितना कारगर है, यह जाने बिना इसका पता नहीं चल पाएगा. हालांकि कोविड-19 संक्रमण को रोकने के लिए यह माना जा रहा है कि 60 से 70 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन देने की ज़रूरत होगी.
हालांकि अगर वैक्सीन कारगर हुआ तो इसे दुनिया भर की आबादी को देने की ज़रूरत होगी.
कैसे बनती है वैक्सीन?
इंसानी शरीर में ख़ून में व्हाइट ब्लड सेल होते हैं जो उसके रोग प्रतिरोधक तंत्र का हिस्सा होते हैं.
बिना शरीर को नुक़सान पहुंचाए वैक्सीन के ज़रिए शरीर में बेहद कम मात्रा में वायरस या बैक्टीरिया डाल दिए जाते हैं. जब शरीर का रक्षा तंत्र इस वायरस या बैक्टीरिया को पहचान लेता है तो शरीर इससे लड़ना सीख जाता है.
इसके बाद अगर इंसान असल में उस वायरस या बैक्टीरिया का सामना करता है तो उसे जानकारी होती है कि वो संक्रमण से कैसे निपटे.
दशकों से वायरस से निपटने के लिए जो टीके बने उनमें असली वायरस का ही इस्तेमाल होता आया है.
मीज़ल्स, मम्प्स और रूबेला (एमएमआर यानी खसरा, कण्ठमाला और रुबेला) टीका बनाने के लिए ऐसे कमज़ोर वायरस का इस्तेमाल होता है जो संक्रमण नहीं कर सकते. साथ ही फ्लू की वैक्सीन में भी इसके वायरस का ही इस्तेमाल होता है.

लेकिन कोरोना वायरस के मामले में फिलहाल जो नया वैक्सीन बनाया जा रहा है उसके लिए नए तरीक़ों का इस्तेमाल हो रहा है और जिनका अभी कम ही परीक्षण हो सका है. नए कोरोना वायरस Sars-CoV-2 का जेनेटिक कोड अब वैज्ञानिकों को पता है और अब हमारे पास वैक्सीन बनाने के लिए एक पूरा ब्लूप्रिंट तैयार है.
वैक्सीन बनाने वाले कुछ डॉक्टर कोरोना वायरस के जेनेटिक कोड के कुछ हिस्से लेकर उससे नया वैक्सीन तैयार करने की कोशिश में हैं. कई डॉक्टर इस वायरस के मूल जेनेटिक कोड का इस्तेमाल कर रहे हैं जो एक बार शरीर में जाने के बाद वायरल प्रोटीन बनाते हैं ताकि शरीर इस वायरस से लड़ना सीख सके.
क्या सभी उम्र के लोग बच पाएंगे?
माना जा रहा है कि वैक्सीन का ज़्यादा उम्र के लोगों पर कम असर होगा. लेकिन इसका कारण वैक्सीन नहीं बल्कि लोगों की रोग प्रतरोधक क्षमता से है क्योंकि उम्र अधिक होने के साथ-साथ व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती जाती है.
हर साल फ्लू के संक्रमण के साथ ये देखने को मिलता है.

सभी दवाओं के दुष्प्रभाव भी होते हैं. बुख़ार के लिए आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली पैरासेटामॉल जैसी दवा के भी दुष्प्रभाव होते हैं.
लेकिन जब तक किसी वैक्सीन का क्लिनिकल परीक्षण नहीं होता, ये जानना मुश्किल है कि उसका किस तरह से असर पड़ सकता है.
किनको मिलेगी सबसे पहले वैक्सीन?
अगर वैक्सीन विकसित हो जाए तो भी सबसे बड़ा सवाल यही है कि सबसे पहले वैक्सीन किनको मिलेगी? क्योंकि शुरुआती तौर पर वैक्सीन की लिमिटेड सप्लाई ही होगी. ऐसे वैक्सीन किसको पहले मिलेगी, इसको भी प्रायरटाइज किया जा रहा है.
कोविड-19 मरीज़ों का इलाज करने वाले स्वास्थ्यकर्मी इस सूची में टॉप पर हैं. कोविड-19 से सबसे ज़्यादा ख़तरा बुज़ुर्गों को होता है, ऐसे में अगर यह बुज़ुर्गों के लिए कारगर होता है तो उन्हें मिलना चाहिए.
जब तक वैक्सीन नहीं बनती तब तक...
ये बात सच है कि टीका व्यक्ति को बीमारी से बचाता है, लेकिन कोरोना वायरस से बचने का सबसे असरदार उपाय है अच्छी तरह साफ़-सफ़ाई रखना. सोशल डिस्टेंसिग के प्रावधानों को पालना करना.
आपको यह भी ध्यान रखना है कि अगर आपको कोरोना वायरस संक्रमण हो भी जाता है तो 75 से 80 प्रतिशत मामलों में यह मामूली संक्रमण की तरह ही होता है.
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